Jī. Pī Śrīvāstava kī kr̥tiyoṃ meṃ hāsya-vinoda

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Lakhnaū Viśvavidyālaya, 1963 - 241 pages

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अंग्रेजी अथवा अधिक अनेक अन्य अपनी अपने अवधी आज आदि इन इस प्रकार इसका इसके इसमें इसी ई० में उनकी उनके उपहास उर्दू उसके एवं ऐसे कभी कर करते हैं करने कहा कहीं का किया किया गया है किया है किसी की ओर कुछ के कारण के लिए केवल को कोई गई जब जा जाता है जी जी० पी० की जी० पी० ने जीवन जो तक तथा तो था थी थे दिया दृष्टि दो द्वारा नहीं नाटक नारी पर परन्तु पात्र पात्रों पृष्ठ प्रकार के प्रयोग प्रायः प्रेम बहुत कुछ भारत भाषा भी में एक यह यहाँ युग रचना रचनाओं रहे राम रूप रूप में रूप से लखनऊ लाल लेकर वर्ग वह विशेष वे व्यंग्य शैली सकता सकते सन् सभी समय समाज साहित्य में से स्थान स्वयं हम हास्य के हिन्दी हिन्दी साहित्य ही हुआ हुए हृदय है और है कि हैं हो होगा होता है होती होते होने

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